Thursday, November 21, 2013

विश्वसनीय और बुनियादी लेखन के पर्याय थे ओमप्रकाश वाल्मीकि


हिन्दी साहित्य का विहंगम इतिहास तब सवालों के घेरे में आ जाता है जब मुक्ति की चाह बुद्धि की जगह अनुभव की आग में तपकर सामने आती है। सदियों के संताप को मिटाने की छटपटाहट साहित्य की चाल और उसके चरित्र को बेपर्द करती है और निर्णायक परिवर्तन का शंखनाद करती है। तब सारे आंदोलन, प्रतिरोध, जनपक्षधरता, विमर्श और मुक्ति के मायने बदल जाते हैं। साहित्य में इस परिवर्तनकामी माहौल को तैयार करने वालों की अग्रिम पंक्ति में खड़े होते हैं ओमप्रकाश वाल्मीकि। हंसमुख चेहरे वाला सज्जन इंसान लेकिन जाति व्यवस्था की पथरीली चट्टान पर सच्चाई के हथौड़े से चोट कर बदलाव र्की ंचगारी को जन्म देने वाला प्रखर योद्धा। लेखन की मुख्य धारा को मोड़ने की क्षमता रखने वाला समर्पित एवं संवर्धित रचनाकार।
समाज से हर तरह की गैर बराबरी, शोषण और जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपने लेखन से मानवता की छाती चौड़ी करने का काम किया। अपने तीर्खे ंकतु प्रभावी लेखन से यह स्पष्ट किया कि जब खेत-खलिहान, कुंआ-तालाब, नदी-नाला, हाट-बाजार, स्कूल-कॉलेज, नौकरी-पेशा हर ठांव ‘ऊपरवालों’ का है तो दलितों के हिस्से श्रम और केवल श्रम के अलावा कुछ भी तो नहीं बचता। उन्होंने वंचितों को जातियों के दंश से उबरने का बोध कराया ताकि उन्हें खुद के मुनष्य होने पर भरोसा हो सके। अवसर की कमी के बावजूद कुछ हासिल करने पर उलाहनों और कटाक्षों का जवाब दे सके।
‘जूठन’ की रचना हिन्दी साहित्य में युगान्तकारी घटना है। दलित जीवन की सच्ची और दिल दहला देने वाली कहानी है। इस कृति ने वंचितों की नारकीय समस्याओं की ओर हिन्दी जगत का ध्यान आकृष्ट कराया। कुछ आलोचकों की ओर से ‘जूठन’ के विषयवस्तु को अविश्वसनीय बताने और इसकी भाषा को अतिरंजित करार देने के बावजूद इस आत्मकथा को पाठकों ने हाथों हाथ लिया। बल्कि यह कृर्ति ंहदी साहित्य में यथार्थ लेखन का दस्तावेज बन गई।
कवि, कथाकार, नाटककार और विचारक के तौर पर अपनी छाप छोड़ने वाले ओम प्रकाश वाल्मीकि ने अपने जीवन के तमाम कष्टों, यातनाओं, उपेक्षाओं, प्रताड़नाओं को इतनी ईमानदारी से लिखा कि उनकी रचनाएं पूरे दलित वर्ग की आवाज बन गई। उनकी कविताएं, उनकी कहानियां साहित्य के पुनर्मूल्यांकन और पुनर्पाठ की मांग करती है। अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति के आधार दलितों द्वारा लिखे साहित्य को ही दलित साहित्य घोषित करने वाले वाल्मीकि जी हिन्दी की परंपरा में सब खराब ही नहीं मानते थे, बल्कि जो अच्छा है उसे रेखांकित भी करते थे। विश्वसनीय, संवादधर्मी और बुनियादी लेखन के लिए हिन्दी पट्टी हमेशा ही ओमप्रकाश वाल्मीकि का ऋणी रहेगी।
 सत्यकेतु